मूवी रिव्यू : छिछोरे


रोमांस कॉमिडी सिनेमा का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन परोसना होना चाहिए, मगर जो फिल्म मनोरंजन के साथ मेसेज भी दे उसे तो सोने पर सुहागा ही कहना होगा। निर्देशक नितेश तिवारी की 'छिछोरे' भी उसी लीग की फिल्म है, जिसमें कई परतें हैं। इन परतों से हर कोई अपने आप को किसी न किसी लेयर के साथ कनेक्ट करेगा। चाहे वह कॉलेज डेज की छिछोरी यादें हों, दोस्ती में मर-मिटने की बातबी हो, पैरंटिंग हो, होनहार स्टूडेंट्स का कॉम्पटिटिव एग्ज़ाम में सिलेक्ट होने का प्रेशर हो अथवा तलाकशुदा पति-पत्नी के बीच का ईगो। 
अनिरुद्ध (सुशांत सिंह राजपूत) का बेटा राघव (मोहम्मद समद) पढ़ाई -लिखाई में बहुत होनहार और मेहनती है और एंट्रेंस एग्ज़ाम में सिलेक्ट होने के प्रेशर से गुजर रहा है। माया (श्रद्धा कपूर) से डिवॉर्स लेने के बाद अनिरुद्ध सिंगल पैरंट है। एंट्रेंस एग्जाम्स में जब राघव का सिलेक्शन नहीं हो पाता, तो वह इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाता और दोस्त की बिल्डिंग से कूदकर जान देने की कोशिश करता है। खुदकशी की कोशिश में उसके दिल-दिमाग पर गहरी चोट लगती है। अनिरुद्ध जब बेटे को हाथों से जाता हुआ देखता है, तो बेटे को बचाने के लिए अपने हॉस्टल डेज के दौर में ले जाता है। हॉस्टल में माया के प्यार के साथ उसे सेक्सा( वरुण शर्मा), डेरेक (ताहिर राज भसीन), एसिड (नवीन पॉलीशेट्टी), बेवड़ा (सहर्ष शुक्ला), क्रिस क्रॉस( रोहित चौहान), मम्मी (तुषार पांडे) जैसे जिगरी दोस्तों की दोस्ती मिलती है, तो रेजी (प्रतीक बब्बर) जैसे अव्वल स्टूडेंट की राइवलरी। गहन बेहोशी में जा चुके राघव की बॉडी पिता अनिरुद्ध की यादों के साथ रिस्पॉन्ड करने लगती है। अनिरुद्ध अपने हॉस्टल के इन सभी जिगरी यारों को इकट्ठा करता है। अनिरुद्ध राघव को बताता है कि कैसे वे हॉस्टल में लूजर्स के नाम से कुख्यात उन लोगों ने खुद को लूजर्स के टैग से मुक्त करने की कोशिश की थी, मगर अनिरुद्ध के अतीत की कहानी से राघव की हालत क्रिटिकल हो जाती है। क्या अनिरुद्ध, माया और उनके दोस्तों का पास्ट राघव को बचा पाएगा, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। 
नितेश तिवारी एक सुलझे हुए संवेदनशील निर्देशक हैं और उनके ये गुण 'छिछोरे' में भी देखने को मिलते हैं। उन्होंने नब्बे के दशक के माहौल को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया है। उस जमाने की लूज जींस, केसियो घड़ियां, रेनॉल्ड्स पेन, प्लेबॉय सरीखी मैगजींस जैसी छोटी-छोटी डिटेलिंग ने उनके किरदारों को रंग दिए हैं। चूंकि वे फिल्म के सह-लेखक भी हैं तो उन्होंने एंट्रेंस या मेडिकल एग्जाम्स में चुने जाने के बच्चों के प्रेशर को बखूबी दर्शाया है। फिल्म के एक भावुक दृश्य में अनिरुद्ध अपनी बीवी माया और दोस्तों के सामने कन्फेशन करता है कि मैंने शैंपेन की बोतल इसलिए लाकर रखी थी कि बेटे के सिलेक्ट हो जाने के बाद मैं उसके साथ इसे पीकर सेलिब्रेट करूंगा। मैंने बेटे को यह तो बताया कि चुने जाने पर सेलिब्रेट कैसे करना है, मगर यह नहीं बताया कि अगर वह एग्ज़ाम पास नहीं कर पाया, तो क्या करना है। नितेश ने प्रजेंट और फ्लैशबैक के दृश्यों के बीच भी अच्छा ताल-मेल बैठाया है। बॉयज हॉस्टल में बैचलर लड़कों की दुनिया कॉमिडी, छिछोरी डायलॉगबाजी, रोमांस और राइवलरी से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है। हालांकि फिल्म में 'थ्री इडियट्स' जो जीता वही सिकंदर जैसी फिल्मों की झलक भी देखने को मिलती है।
परफॉर्मेंसेज के मामले में फिल्म रिच है। सुशांत सिंह राजपूत ने नौजवान अनि के साथ अधेड़ अनिरुद्ध को भी बखूबी जिया है। श्रद्धा कपूर भी यंग और मच्यॉर माया के रूप में खूब जमी हैं। फिल्म में वे बला की खूबसूरत भी लगी हैं। सुशांत और श्रद्धा की केमेस्ट्री में मासूमियत झलकती है। सेक्सा के रूप में वरुण शर्मा का किरदार लाउड था, मगर उन्होंने अपनी लाउडनेस से खूब एंटरटेन किया है। राघव के रूप में मोहम्मद समद की परफॉर्मेंस ईमानदारी से भरी है। डेरेक के रूप में ताहिर राज भसीन का काम दमदार है, तो एसिड (नवीन पॉलीशेट्टी), बेवड़ा (सहर्ष शुक्ला), क्रिस क्रॉस( रोहित चौहान), मम्मी (तुषार पांडे)के किरदार कहानी में जान डाल देते हैं। ग्रे किरदार रेजी के रूप में प्रतीक बब्बर ने अच्छा काम किया है। प्रीतम के संगीत में बने गाने औसत हैं। क्यों देखें: मनोरंजन के साथ मेसेज देनेवाली इस फिल्म को जरूर देखें।