भाद्रपद मास का महत्त्व
चैत्रादि गणना अंतर्गत भाद्रपद छठा मास है । इस मास की पूर्णिमा के आसपास पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र आता है । इसीलिए इस मास को 'भाद्रपद' के नाम से जानते हैं । इस मास का दूसरा नाम है 'नभस्य' । भाद्रपद मास में श्रीविष्णु की कृपा हेतु मधु एवं घी का उपयोग कर बनाई खीर के साथ गुड चावल एवं नमक का दान करने का विधान वामनपुराण में बताया गया है । इसी मास में एकभुक्त रहने से अर्थात एकही बार भोजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है । इस मास के कुछ विशेष व्रत हैं,
- हरितालिका
- गणेशचतुर्थी
- ऋषिपंचमी
- ज्येष्ठागौरी एवं
- अनंत चतुर्दशी
इनमें से श्रीगणेश चतुर्थी, व्रत के साथ-साथ त्यौहार तथा उत्सव के रूप में भी मनाई जाती है ।
हरितालिका
तिथि
यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को किया जाता है । इस वर्ष हरितालिका तीज 2 सितंबर 2019 को है। मां पार्वती इस व्रत की प्रधान देवी हैं । इस व्रत में उमा-महेश्वर की मूर्ति की स्थापना कर यथाविधि उनका पू्जन किया जाता है । कुछ प्रदेशों में देवता पूजन के साथ हवन भी किया जाता है, जिस में तिल एवं घी इत्यादि की आहुति देते हैं । इसी दिन 'हरिकाली', 'हस्तगौरी' एवं 'कोटेश्वरी' इत्यादि मां पार्वती के रूपों के व्रत भी होते हैं । विशेषकर स्त्रियां ही ये व्रत करती हैं ।
हरितालिका व्रतका उद्देश्य एवं लाभ
मां पार्वती ने शिवजी को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया था । इसीलिए अनुरूप वर की प्राप्ति के लिए विवाहयोग्य कन्याएं यह व्रत करती हैं, तो सुुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए सुहागन स्त्रियां भी यह व्रत करती हैं ।
हरितालिका व्रत करने से होनेवाले विविध लाभ
- इस दिन उपवास रखने के कारण देह पवित्र होती है !
- ब्रह्मांड में विद्यमान शिवतत्त्व, व्रतकर्ती की ओर आकृष्ट होते हैं ।
- उसकी शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने में सहायता होती है ।
- कठोर व्रतपालन से मृत्यु के उपरांत व्रतकर्ती को शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है ।
इस प्रकार यह व्रत इस जन्म में सांसारिक विघ्न दूर करनेवाला एवं मृत्यु के उपरांत लाभ प्रदान करनेवाला है ।
प्रातःकाल मंगलस्नान कर पार्वती एवं उसकी सखी की मूर्ति लाकर शिवलिंगसहित उनकी पूजा की जाती है । रात को जागरण करते हैं और अगले दिन उत्तरपूजा (समापन पूजा) कर लिंंग तथा मूर्ति विसर्जित करते हैं ।
सनातन हिंदु धर्म में प्रत्येक मास का विशेष महत्त्व है । साथ ही प्रत्येक मास में वातावरण में होनेवाले परिवर्तन का परिणाम सृष्टिपर भी होता है । इसका विचार कर शास्त्रों में प्रत्येक मास में कुछ विशेष धार्मिक कृत्य करने के विधान बताए गए हैं । इनमें कुछ त्यौहार, कुछ उत्सव, तो कुछ व्रत भी अंतर्भूत हैं । इनका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व एवं आधार समझने से इनके प्रति श्रद्धा बढने में सहायता होती है । प्रत्येक व्रत से संबंधित विशेष धार्मिक विधि, उपवास, संकल्प इत्यादि आचार होते हैं । देवतापूजन के स्थान को स्वच्छ कर रंगोली इत्यादि से सुशोभित करते हैं । चौकी के दोनों ओर दीपस्तंभ रखते हैं । पूजन की थाली में सजाई सामग्री पूजास्थान के समीप रखते हैं । हरितालिका पूजन के आरंभ में सर्वप्रथम स्त्रियां आचमन, प्राणायाम करने के उपरांत देशकाल कथन करती हैं । इसके पश्चात स्त्रियां संकल्प करती हैं…
मम उमामहेश्वरसायुज्यसिद्धये हरितालिकाव्रतम् अहं करिष्ये ।
अर्थात, श्री उमामहेश्वर से सायुज्य मुक्ति प्राप्त होने के लिए मैं यह हरितालिका व्रत करती हूं ।
- इस दिन स्त्रियां नदी के तटपर जाकर अथवा उपलब्धि के अनुसार बहते एवं शुद्ध पानी की बालू अर्थात महीन रेत घर ले आती हैं ।
- घर पर सजाए हुए देवतापूजन के स्थान पर इस रेत की शिवपिंडी बनाती हैं ।
- आजकल नगरों में एवं बडे शहरों में मां पार्वती एवं उनकी सखी की, शिवलिंग के साथ मूर्तियां उपलब्ध हैं!
- मां पार्वती एवं सखी की मूर्तियों को घर में स्थापित कर, उनका पूजन किया जाता है ।
- हरितालिका पूजन में बिल्वपत्र, अपामार्ग अर्थात चिचडा, पारिजात, करवीर अर्थात कनेर, अशोक इत्यादि सोलह प्रकार की पत्रियां शिवपिंडी पर चढाई जाती हैं ।
- साथ ही स्त्रियां श्वेत पुष्प भी समर्पित करती हैं ।
- गुड-खोपरा अर्थात जैगरी एंड कोकोनट कर्नल, दूध एवं उपलब्धता के अनुसार फल नैवेद्यस्वरूप निवेदित करती हैं ।
- तदुपरांत देवी हरितालिका की आरती उतारती हैं ।
- पूजन के उपरांत स्त्रियां भावपूर्ण प्रार्थना करती हैं । इस दिन पूजा के समय प्रज्वलित किया गया दीप विसर्जन के समय तक प्रज्वलित रखते हैं, उसे बुझने नहीं देते । इससे पूजक के भाव के अनुसार उसे शिव तत्त्व एवं तेज तत्त्व के लाभ होते हैं ।
- सायं समय भी स्त्रियां देवी की आरती करती हैं तथा रात्रि के समय जागरण कर हरितालिका की कथा का श्रवण करती हैं ।
- हरितालिका के दिन पूजन करने के साथ ही स्त्रियां दिनभर उपवास रखती हैं । उपवास करने का अर्थ है, अन्न ग्रहण न कर नामस्मरण करते हुए देवता से सतत अनुसंधान साधना ।
- स्त्रियां जीवन में आनेवाले विघ्न दूर करने के लिए शिवजी से प्रार्थना करती हैं । भावपूर्ण प्रार्थना के कारण स्त्री की ओर शिव-शक्ति के प्रवाह आकृष्ट होते हैं तथा उसके भावानुसार उसे लाभ मिलते हैं ।
हरितालिका व्रत के दूसरे दिन की जानेवाली विधि
स्त्रियां देवी की आरती करती हैं । देवी को दही एवं चावल का नैवेद्य निवेदित करती हैं । तदुपरांत शिवपिंडी एवं सखी पार्वती की मूर्तियां जलस्रोत के पास ले जाती हैं एवं उन्हें बहते पानी में विसर्जित करती हैं । कुछ स्थानों पर हरितालिका के दूसरे दिन स्त्रियां यथाशक्ति एक, आठ अथवा सोलह दंपति को भोजन कराती हैं तथा उन्हें सौभाग्यद्रव्य भरे सुहाग की निशानियों का दान देती हैं । इसके उपरांत स्वयं भोजन कर व्रत का समापन करती हैं ।
संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ, 'श्री गणपति' एवं 'त्योहार धार्मिक उत्सव एवं व्रत'
कृतिका खत्री
सनातन संस्था
9990227769